Ad

न्यूनतम समर्थन मूल्य -एमएसपी

MSP Committee: संयुक्त किसान मोर्चा को बिनोद आनंद पर क्यों है आपत्ति?

MSP Committee: संयुक्त किसान मोर्चा को बिनोद आनंद पर क्यों है आपत्ति?

संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) ने एक प्रेस नोट जारी किया है। इसमें मोदी सरकार द्वारा गठित एमएसपी कमेटी (MSP Committee) के सदस्य बिनोद आनंद की सदस्यता को कटघरे में रखा गया है। मोर्चा के मुताबिक आनंद का कृषि क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है। कौन हैं बिनोद आनंद, कृषि और कोऑपरेटिव और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का उन्हें कितना अनुभव है। एमएसपी कमेटी में शामिल किए जाने पर संयुक्त किसान मोर्चा को आपत्ति क्यों है? जानिये-

विरोधाभास की वजह

केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा वृहद समिति के गठन के बाद संयुक्त किसान मोर्चा की नाराजगी और बढ़ गई है। इस बार केंद्र सहित सदस्य बिनोद आनंद निशाने पर हैं।



ये भी पढ़ें: MSP on Crop: एमएसपी एवं कृषि विषयों पर सुझाव देने वृहद कमेटी गठित, एक संगठन ने बनाई दूरी

केंद्र सरकार के केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने वृहद समिति के गठन का कारण कृषि एवं कृषक उन्नयन के प्रति सरकार की सजगता बताया है। केंद्र सरकार द्वारा बहुप्रतीक्षित एमएसपी कमेटी (MSP Committee) गठन के बाद विपक्ष की ओर से कांग्रेस और बसपा ने लिखित सवाल किए थे।

तीन नाम रिक्त

कमेटी के गठन के लिए सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा से तीन नाम प्रस्तावित करने कहा था। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने मोर्चा की ओर से इस समिति के लिए प्रस्तावित नामों के लिए 6 महीने तक इंतजार किया। इस संदर्भ ने मोर्चा ने अभी तक नाम नहीं सुझाए हैं।

समिति के खिलाफ मोर्चा का मोर्चा

कमेटी गठित होने के बाद मोर्चा ने सदस्यों के साथ ही सदस्य चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। मोर्चा ने कई सदस्यों पर सरकार और डब्ल्यूटीओ का समर्थक होने का आरोप लगाया है। ऐसे ही एक सदस्य बिनोद आनंद (Binod Anand) पर आरोप हैं कि उनका कृषि से कोई लेना देना ही नहीं है।



ये भी पढ़ें: कृषि-कृषक विकास के लिए वृहद किसान कमेटी गठित, एमएसपी पर किसान संगठन रुष्ट, नए आंदोलन की तैयारी

वहीं दूसरी ओर आनंद के पक्ष में दावा है कि, बिनोद आनंद काफी लंबे अर्से से खेती-किसानी के साथ ही सहकारिता क्षेत्र के लिए सेवा प्रदान कर रहे हैं। वो किसान आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं, ऐसा भी उन्हें चुनने वालों का कहना है।

मोर्चा का प्रेस नोट

संयुक्त किसान मोर्चा अराजनैतिक ने आनंद की काबलियत पर प्रेस नोट के जरिए सवाल उठाए हैं। प्रेस नोट में दर्ज है कि, किसान सहकारिता समूह के प्रतिनिधि के तौर पर बिनोद आनंद को इस कमेटी में शामिल किया गया है, जिनका कृषि क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है। मोर्चा ने सोशल मीडिया प्रोफाइल के हवाले से बिनोद आनंद को कटघरे में रखने की कोशिश की है। मोर्चा के अनुसार आनंद 2010-14 तक बीजेपी की ह्यूमन राइट्स सेल की नेशनल टीम में शामिल रहे। मोर्चा का ये भी कहना है कि आनंद ने धानुका एग्रो-केमिकल (Dhanuka Agritech Limited) में भी सलाहकार के तौर पर काम किया।

प्राइवेट कंसल्टेंसी का हवाला

अपने खिलाफ खोले गए मोर्चा के मोर्चे पर बिनोद आनंद ने भी अपना पक्ष रखा है। उन्होंने प्राइवेट सेक्टर में कंसंल्टेंसी से परिवार का भरण-पोषण करने का हवाला दिया एवं दूसरे किसान नेताओं को चंदाजीवी करार दिया। उन्होंने सवाल किया कि, बीजेपी का सदस्य होने से क्या कोई सदस्य किसान नहीं हो सकता? साथ ही जोड़ा कि, किसी भी पार्टी में आस्था रखने वाला सदस्य किसान हो सकता है।

बिनोद आनंद और कृषि कानून

बिहार में नवादा जिले के घोस्तमा गांव में रहने वाले बिनोद आनंद पढ़े-लिखे छोटे किसान हैं। आनंद खेती के तौर-तरीके बदलकर उसे मॉडर्न बनाने पक्षधर हैं, ताकि किसानों के जीवन स्तर में सुधार आ सके। आनंद चर्चा में इसलिए आए क्योंकि वे कृषि कानूनों में संशोधन करके उसे लागू करने के पक्ष में थे। उन्होंने इसके लिए कुछ शर्तों के साथ अपनी संस्था के नाम से इस कानून के पक्ष में 3,13,363 किसानों के समर्थन से संबंधित पत्र, आंदोलन के दौरान ही केंद्र सरकार को सौंप दिए थे। ये भी पढ़ेंकेन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

किया था विरोध

उन्होंने कांट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट (Model Contract Farming Act, 2018) में किसानों से कोर्ट जाने का अधिकार छीने जाने पर अपना विरोध दर्ज कराया था। इसके अलावा तीनों कृषि कानूनों के कुछ प्रावधानों पर भी उन्होंने आपत्ति जताई थी। इनमें सुधार की शर्त के साथ ही उन्होंने सरकार को समर्थन प्रदान किया था। आनंद का कहना है कि, मंदसौर किसान आंदोलन में उन्होंने शिव कुमार शर्मा कक्का और गुरुनाम सिंह चढूनी के साथ सहभागिता की थी। आनंद, राष्ट्रीय किसान महासंघ के सदस्यों में से एक सदस्य हैं। मंदसौर कांड मामले में जंतर-मंतर पर लंबे समय तक किए गए धरना प्रदर्शन में भी वे शामिल रहे। किसानों को कर्ज मुक्त करने के साथ ही कृषि फसल की पूरी कीमत की मांग के साथ वे आंदोलन कर चुके हैं।

कोऑपरेटिव रिलेशन

कोऑपरेटिव सेक्टर से उनके संबंधों के बारे में भी बात की जाती है। वे दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में कई कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं।

ये भी पढ़ें अब सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को मिलेगा सरकार की योजनाओं का लाभ

वे सहकारिता क्षेत्र के जाने-माने संस्थान पुणे स्थित वैकुंठ मेहता नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कोऑपरेटिव मैनेजमेंट के अल्मुनाई हैं। कृषि और कॉपरेटिव को लेकर आणंद, गुजरात स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट यानी इरमा और हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस के कई कार्यक्रमों का वे हिस्सा रह चुके हैं। आनंद, कॉन्फेडरेशन ऑफ एनजीओ ऑफ रूरल इंडिया (सीएनआरआई) के महासचिव हैं।

आरोप नहीं नाम दें

आरोपों के जवाब में बिनोद आनंद ने उल्टा मोर्चा को सलाह दी है। उन्होंने कहा कि, लंबे इंतजार के बाद भी संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने नाम नहीं दिया है। ऐसे में सरकार ने एमएसपी व्यवस्था को प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने, फसल विविधीकरण और जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के लिए कमेटी का गठन कर दिया। सरकार ने इस वृहद समिति में मोर्चा की ओर से प्रस्तावित तीन नामों के लिए जगह भी रिक्त छोड़ी है। ऐसे में कमेटी के किसी सदस्य पर सवाल उठाने की बजाय मोर्चा को अपने आपसी झगड़ों को खत्म करना चाहिए। साथ ही मोर्चा को इस समिति का हिस्सा बनकर किसान के हित में काम करने के लिए सहयोग करना चाहिए। संयुक्त किसान मोर्चा से आनंद ने सहयोगी रुख अपनाने की अपील की है, वहीं मोर्चा का रुख सरकार के खिलाफ मोर्चा जारी रखने का नजर आ रहा है।

खुशखबरी: २०० करोड़ के निवेश से इस राज्य में बनने जा रहा है अनुसंधान केंद्र

खुशखबरी: २०० करोड़ के निवेश से इस राज्य में बनने जा रहा है अनुसंधान केंद्र

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आयुष मंत्रालय बदरवाह में अनुसंधान केंद्र निर्माण हेतु २०० करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं। यह जम्मू-कश्मीर के कृषकों के लिए हर्ष की बात है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया है, कि जम्मू-कश्मीर में कृषि-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप का केंद्र बनने के असीमित अवसर हैं। इसी संबंध में उनका यह भी कहना है, कि जम्मू में उत्पादित होने वाले बांसों का प्रयोग अगरबत्ती समेत विभिन्न प्रकार के आवश्यक उत्पादों के निर्माण हेतु हो सकता है। इस वजह से बांस की खेती के क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी तो होगी ही साथ में किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि स्ट्रॉबेरी व सेब एवं ऐसे अन्य फलों की जीवनावधि को कोल्ड-चेन की उत्तम व्यवस्था के जरिये बढ़ाया जाना संभव है।

ये भी पढ़ें: ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए स्टार्टअप्स को बढ़ावा देगी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी

उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर में गैर-इमारती वन उत्पाद (NTFP) में आने वाले पौधे जिनमें मशरूम, गुच्ची एवं अन्य औषधीय पौधे काफी संख्या में मिल जाते हैं। चिनाब घाटी अथवा पीर पंजाल क्षेत्र (राजौरी, पुंछ) उच्च गुणवत्ता वाले शहद एवं एनटीएफपी का केंद्र है। दरअसल, इनकी उचित तरीके से विपणन नहीं हो पाती है। केंद्रीय मंत्री ने बताया है, कि प्रदेश के जम्मू-कश्मीर औषधीय पादप बोर्ड एवं वन विभाग को साम्मिलित किया, क्योंकि एक सहायक पद्धति के जरिये से उत्पादन, बिक्री और विपणन की आवश्यकता है। 

कृषि संबंधित औघोगिक क्रांति से बेहद मुनाफा हो सकता है

उपरोक्त में जैसा बताया गया है, कि डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आयुष मंत्रालय बदरवाह में अनुसंधान केंद्र निर्माण हेतु २०० करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं।. इसी दौरान मंत्री का कहना है, कि कृषि, बागवानी एवं ग्रामीण विकास की भाँति अनेकों प्रगतिशील क्षेत्रों में कार्यरत सरकारी संगठनों हेतु निरंतर सहायता की आवश्यकता है। साथ ही उनका कहना है, कि शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय (SKUAST) कश्मीर, को उद्यमिता विकास संस्थान (EDI) के साथ मिलकर भेड़पालन व पशुपालन विभागों को सहायता प्रदान करनी चाहिए। 

किसानों को (एफपीओ) व सहकारी समितियों के जरिये संस्थागत होना चाहिए

बतादें कि, मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है, कि किसानों को सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से संस्थागत होना महत्वपूर्ण है। कृषि एवं बागवानी क्षेत्रों में स्थानीय मांगो पर ध्यान केंद्रित हो, एवं ऐैसे नौजवानों को तैयार करना होगा जिनकी इस क्षेत्र में कार्य करने की रूचि हो। साथ ही, एनजीओ किसानों को फसल बीमा अर्जन हेतु संवेदनशील बनाना अति आवश्यक है, क्योंकि इसकी जम्मू और कश्मीर में बेहद जरूरत है। केंद्रीय मंत्री के अनुसार, इस प्रकार के सरकारी संगठनों द्वारा समर्थन हेतु कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में कार्यशील प्रमुख गैर सरकारी संगठनों व अनुसंधान संस्थानों का सम्मिलित होना अति आवश्यक है। बाजार में अच्छी पकड़ हेतु, अधिकारियों द्वारा कोई ऐसी नीति जारी होनी जरूरी है, जो स्थानीय कृषि और बागवानी उत्पादों जैसे अखरोट, सेब व राजमा आदि के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की जिम्मेदारी उठा सके।